Wednesday, December 27, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 40

‘‘धैर्य की परीक्षा’’ प्रथम भाग 
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महाभारत की कथा की 65वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। एक बार च्यवन ऋषि राजा कुशिक के धैर्य की परीक्षा लेने के विचार से उनके पास गये और उन्होंने शर्त रखी कि उन्हें मुनि की सभी बातें माननी होगी। राजा इसके लिये सहर्ष तैयार हो गये, किन्तु च्यवन ऋषि का तरीका हमेशा से ही विचित्र रहा है। यह कथा भी उनकी आश्चर्यजनक घटनाओं एवं तरीकों को सहजता से उजागर करती है। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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 विश्वजीत ‘सपन’

Saturday, December 23, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 39

‘‘समुद्रशोषण का वृतान्त’’
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महाभारत की कथा की 64वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। वृत्रासुर का आतंक बढ़ा हुआ था। ब्रह्मा जी के आदेश पर एक वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया, किन्तु कालकेय इसे अपना अपमान मानते रहे। उन्होंने समुद्र में जाकर शरण ली और रात्रि में आतंक मचाने के बाद पुनः समुद्र में जाकर छिपने लगे। कोई उपाय न देखकर देवतागण अगस्त्य मुनि के पास गये और उनसे समुद्र को पीने का अनुरोध किया। रहस्य एवं रोमांच से भरी यह कथा बड़ी अनूठी है और इससे आगे की कथा का भी जुड़ाव है। इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Tuesday, December 19, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 38

‘‘मोहिनी तिलोत्तमा’’
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महाभारत की कथा की 63वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। सुन्द एवं उपसुन्द ने किसी और के द्वारा नहीं मारे जाने का वर प्राप्त कर लिष्या था। उसके बाद वे मनमानी करने लगे। परेशान होकर सभी लोग देवताओं के पास गये। देवतालोग ब्रह्मा जी के पास गये, तो उन्होंने तिलोत्तमा के निर्माण का कार्य विश्वकर्मा जी को दिया। तिलोत्तमा ने सुन्द एवं उपसुन्द में अपनी मोहिनी सूरत से फूट डाल दी और उसके बाद क्या हुआ इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Friday, December 15, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 37

‘‘परशुराम का गर्व’’ 
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महाभारत की कथा की 62वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा।
 

महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। परशुराम को अपने पराक्रम पर बड़ा गर्व था। श्रीराम की प्रसिद्धि सुनकर वे उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके नगर गये और उनसे अपने धनुष को चढ़ाने को कहा। जब प्रभु श्रीराम ने सरलता से कार्य कर दिया, तब उन्होंने धनुष की डोरी को कान तक खींचने के लिये कहा। प्रभु श्रीराम समझ गये कि उनकी मंशा क्या थी। उसके बाद क्या हुआ इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।

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विश्वजीत ‘सपन’

Wednesday, December 6, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 36

‘‘मित्रता और कृतघ्नता’’ का द्वितीय एवं अंतिम भाग
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महाभारत की कथा की 61वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। गौतम की सहायता करने के उद्देश्य से बकराज राजधर्मा उसे अपने मित्र विरूपाक्ष के पास भेजता है। विरूपाक्ष उसकी तत्काल सहायता करता है और गौतम प्रसन्न होकर धन के साथ अपने घर लौटने लगता है। मार्ग में उसकी भेंट पुनः राजधर्मा से होती है। उसके बाद क्या होता है, इसे विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’

Friday, December 1, 2017

महाभारत की लोककथा - भाग 35

‘‘मित्रता और कृतघ्नता’’ का प्रथम भाग
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महाभारत की कथा की 60वीं कड़ी में प्रस्तुत यह लोककथा। 


महाभारत से भी प्राचीन काल की बात है। गौतम नामक एक ब्राह्मण था। उसने वेद का अध्ययन नहीं किया था और वह निर्धन था। दस्युओं की सहायता पाकर वह भी दस्यु जैसा ही व्यवहार करने लगा। अपने एक मित्र के सुझाव पर उसने उचित मार्ग से धन कमाने का प्रयास किया। तभी उसकी भेंट बकराज राजधर्मा से होती है। यह विस्तार से पढ़ने के लिये नीचे दिये लिंक को क्लिक करें अथवा चित्र में इस कथा को पढ़ें।


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विश्वजीत ‘सपन’